
Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे पुलिस आयुक्त के एक व्यक्ति के खिलाफ एमपीडीए एक्ट के तहत कार्रवाई के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को हिरासत में रखने वाला अधिकारी यह स्पष्ट करने में विफल रहा है कि दूसरी घटना 15 अप्रैल 2024 को कैसे हो सकती है, जबकि याचिकाकर्ता 16 अप्रैल 2024 तक हिरासत में था, जो कि विवेक का प्रयोग न करने का द्योतक है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष पुणे निवासी वैभव अनंत तराडे की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि जब याचिकाकर्ता 16 अप्रैल 2024 को पहले से ही हिरासत में था, तो 15 अप्रैल 2024 को हुई कथित घटना में उसकी भागीदारी का कोई सवाल ही नहीं है। इसलिए हिरासत में रखने वाले अधिकारी द्वारा दूसरे सी.आर.पर भरोसा करना, उनके हिरासत के लिए आधार के रूप में विवेक का उपयोग न करने को दर्शाता है। पीठ ने कहा कि पुणे के पुलिस आयुक्त द्वारा जारी 22 मई 2024 को याचिकाकर्ता को हिरासत में रखने का आदेश रद्द किया जाता है। उसे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया जाता है। सिंहगड पुलिस ने दावा किया कि याचिकाकर्ता के पास एक पिस्तौल और चार जिंदा कारतूस बरामद किया गया था। इसलिए उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। वह एक तड़ीपार व्यक्ति था और उसने पहले ही तड़ीपार के आदेश का उल्लंघन किया था। याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ 17 अप्रैल 2024 को दर्ज शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया था।
पुणे के पुलिस आयुक्त के 22 मई 2024 को दिए गए आदेश में झुग्गी-झोपड़ी दादा, शराब तस्करी, नशीली दवाओं के अपराध, रेत तस्करी और आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी में लगे व्यक्तियों की खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम 1981 (एमपीडीए अधिनियम) की धारा 3 और उपधारा 2 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए याचिकाकर्ता वैभव अनंत तराडे को हिरासत में लेने का निर्देश दिया था। उसे सिंहगड पुलिस स्टेशन के अंतर्गत रहने वाले व्यवसायों के जीवन और संपत्तियों के लिए खतरा बताया गया था।