
डिजिटल डेस्क, नई भोपाल। हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का काफी महत्व बताया गया है, जो कि माह में दो बार आती है। फिलहाल, हिन्दू पंचांग का 12वां और आखिरी महीना फाल्गुन चल रहा है और इस माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi) के नाम से जाना जाता है। इस दिन प्रथम पूज्य भगवान गणपति की पूरे विधि- विधान के साथ पूजा की जाती है।
मान्यता है कि, जो महिलाएं संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखती हैं, उनके घर-परिवार में खुशियों का आगमन होता है। साथ ही व्रत करने से सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। कब है चतुर्थी तिथि और क्या है पूजा विधि और मुहूर्त? आइए जानते हैं…
शुभ मुहूर्त
सुबह की पूजा: 15 फरवरी 2025, शनिवार की रात 11 बजकर 52 मिनट से
शाम की पूजा: 17 फरवरी 2025, सोमवार की रात 02 बजकर 15 मिनट पर
व्रत की सही तिथि: उदयातिथि और चतुर्थी के चांद निकलने के समय के आधार पर संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 फरवरी रविवार को रखा जाएगा।
पूजन विधि
– इस दिन ब्रह्मा मुहूर्त में स्नान कर साफ और धुले हुए कपड़े पहनें।
– इसके बाद घर के मंदिर की सफाई कर गंगा जल का छिड़काव करें।
– भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं और व्रत का संकल्प लें।
– पूजा के लिए भगवान गणेश की प्रतिमा को ईशानकोण में चौकी पर स्थापित करें।
– चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा पहले बिछा लें।
– फिर उन्हें जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें।
– अक्षत और फूल लेकर गणपति से अपनी मनोकामना कहें।
– इसके बाद ओम ‘गं गणपतये नम:’ मंत्र बोलते हुए गणेश जी को प्रणाम करें।
– इसके बाद एक थाली या केले का पत्ता लेकर एक रोली से त्रिकोण बनाएं।
– त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें। इसी के साथ बीच में मसूर की दाल व सात लाल साबुत मिर्च को रखें।
– पूजन उपरांत चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें।
– पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।