LJP-R और RLJP पार्टी को लेकर हो रहे हैं कन्फ्यूज तो पढ़ें ये न्यूज, चिराग पासवान और पशुपति पारस की कौन सी है पार्टी? जानें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार में इस साल नवंबर महीने में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में अगर आप भी एलजेपी-आर (लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास) और आरएलजेपी (राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी) को लेकर कन्फ्यूज हैं तो आप सही खबर पढ़ रहे हैं। 

यह दोनों ही बिहार की क्षेत्रीय पार्टी है। साल 2020 के अक्टूबर महीने में एलजेपी नेता रामविलास पासवान का देहांत हो गया था। जिसके बाद रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति पारस और उनके बेटे चिराग पासवान के बीच जमकर लड़ाई देखने को मिली। जिसके चलते एलजेपी दो धड़ों में टूट गई।

जानें दोनों पार्टियों के बनने का इतिहास

इसके बाद साल 2021 में चुनाव आयोग से इन दोनों गुट को अलग-अलग पार्टी और सिंबल मिला। अब चिराग पासवान के पास एलजेपी-आर यानी लोक जनशक्ति पार्टी है। जिसका चुनाव चिन्ह हेलीकॉप्टर है। वहीं, पशुपति पारस के पास आरएलजेपी यानी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी है। जिसका चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन है। 

बता दें कि, साल 2000 के नवंबर महीने में रामविलास पासवान जनता दल से अलग होकर नई पार्टी बनाई, जिसका नाम उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) बना। जिसका चुनाव चिन्ह बंगला छाप था। चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच बंगला छाप को लेकर काफी लड़ाई देखने को मिली। लेकिन सिंबल देने से चुनाव आयोग ने मना कर दिया। 

जिस तरह महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना का अलग-अलग धड़ा काम करता हैं। ठीक उसी तरह बिहार में आरएलजेपी और एलजेपी-आर है। 

लोकसभा चुनाव में चिराग ने किया था कमाल

बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी-आर ने एनडीए की ओर से पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था और पांचों ही सीट पर जीत दर्ज की। वहीं, पशुपति पारस को एनडीए की ओर से एक भी सीट नहीं मिली। जिसके चलते उन्होंने नाराजगी भी जताई। 

विधानसभा चुनाव में देखना होगा दोनों पार्टियों का हाल 

अब देखना होगा कि यह दोनों पार्टी पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में क्या कमाल कर पाती है? क्योंकि, दोनों ही धड़ा पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहा है। ऐसे में एनडीए की ओर से किसे-कितनी सीटें मिलती है, यह भी देखने वाली बात होगी। हालांकि, पशुपति पारस को लेकर एनडीए खामोश दिखाई दे रही है। अब देखना होगा कि पशुपति पारस को कितनी सीटें एनडीए की ओर से मिलती है या फिर उन्हें लोकसभा चुनाव की तरह ही नजरअंदाज कर दिया जाता है।