क्या था काका कालेलकर कमीशन, जिसकी रिपोर्ट का जिक्र कर अमित शाह ने सदन में कांग्रेस को घेरा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में संविधान पर दो दिन हुई चर्चा का जवाब दिया। इस दौरान उन्होंने आरक्षण को लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को घेरा। शाह ने कहा कि आजकल कुछ लोग आरक्षण-आरक्षण चिल्लाते हैं लेकिन आरक्षण पर उनका रुख अच्छा नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का रुख आरक्षण पर क्या रहा है यह सब जानते हैं।

इस दौरान शाह ने साल 1955 में ओबीसी आरक्षण के लिए बनी काका कालेलकर कमेटी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उस समय इस आयोग की रिपोर्ट संसद को सौंपी गई थी लेकिन इसकी रिपोर्ट कहां है? गृहमंत्री ने कहा कि हमने संसद के दोनों सदनों में इस रिपोर्ट को ढूंढा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। इस पर विपक्ष ने कहा कि आधा सच मत बोलिए। रिपोर्ट संसद भवन की लाइब्रेरी में है। इस पर अमित शाह ने कहा कि यह बाबा साहेब का संविधान है, इसमें आप कुछ नहीं छिपा सकते।

सदन की पटल की जगह लाइब्रेरी में रिपोर्ट

अमित शाह ने सदन में कहा, ‘मैं सदन में बताना चाहता हूं कि उस रिपोर्ट का क्या हुआ? जब कभी भी कोई बी रिपोर्ट संसद में आती है तो उसे कैबिनेट में रखने के बाद सदन के पटल पर रखा जाता है लेकिन इन्होंने उस रिपोर्ट को लाइब्रेरी में रख दिया।’ शाह ने आगे कहा कि यदि उस समय कांग्रेस सरकार ने उस रिपोर्ट की सिफारिशें मान ली होतीं तो मंडन कमीशन के गठन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। इसके साथ ही शाह ने यह भी कहा कि जब मंडल कमीशन की सिफारिशें स्वीकार की जा रही थीं और सदन में उस रिपोर्ट पर चर्चा हो रही थी, तब लोकसभा में विपक्ष के नेता राजीव गांधी ने उसके खिलाफ सबसे लंबा भाषण दिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि ओबीसी को रिजर्वेशन देने से देश में योग्य लोगों का अभाव हो जाएगा।

क्या था काका कालेलकर कमीशन?

काका कालेलकर आयोग आजाद भारत का पहला ओबीसी कमीशन था। इसका गठन 29 जनवरी 1953 में किया गया था। उस समय की नेहरू सरकार में राष्ट्रपति के आदेश पर इसका गठन किया गया था। इस आयोग की अध्यक्षता काका कालेलकर ने की थी। इस आयोग को यह पहचान करने का काम दिया गया था कि कौनसा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा है। इसके साथ ही पिछड़े वर्ग की पहचान कर उसकी समस्याओं की जांच करना और उसके निराकरण के लिए सिफारिशें करना भी आयोग का काम था।

कालेलकर आयोग ने करीब दो साल काम किया और साल 1955 में अपनी 2400 पेजों की रिपोर्ट में जातियों और समुदायों की एक लिस्ट तैयार की। तब आयोग ने भारत में 70 फीसदी आबादी ओबीसी होने की बात कही थी।

आयोग ने उस समय ओबीसी वर्गों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए कई उपाए सुझाए थे लेकिन आरोप है कि तब की केंद्र सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। वहीं इस आयोग की रिपोर्ट में एक बड़ी कमी यह भी थी कि इस रिपोर्ट में केवल हिंदुओं के पिछड़ेपन का जिक्र किया गया था जबकि अन्य धर्मों को नजरअंदाज किया गया था।