जानें क्या होता है ‘एक्ट ऑफ वॉर’, क्यों सिंधु जल समझौता रद्द होने को युद्ध का आगाज मान रहा पाकिस्तान?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के हिल स्टेशन पहलगाम में मंगलवार (22 अप्रैल) को हुए आतंकी हमले के बाद भारत एक्शन मोड में आ गया है। मोदी सरकार ने पाक पर सिंधु जल समझौते को रोकने समेत कई बड़े प्रतिबंध लगाए हैं। हमले के एक दिन बाद बुधवार को पीएम मोदी अध्यक्षता में हुई सीसीएस (कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी) की मीटिंग में सिंधु जल संधि रोके जाने और पाकिस्तानी नागरिकों की वापसी समेत 5 बड़े फैसले लिए गए। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी गुरुवार को एनएससी की बैठक बुलाई, जिसमें शिमला समझौते को रोकने समेत कई फैसले लिए।

इसके अलावा पाकिस्तान की ओर से ये भी कहा जा रहा है कि यदि भारत ने सिंधु नदी का जल रोका तो इसे एक्ट ऑफ वॉर माना जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये एक्ट ऑफ वॉर होता क्या है…क्यों इसका जिक्र बार-बार हो रहा है? आइए जानते हैं।

एक्ट ऑफ वॉर क्या है?

साल 1939 से लेकर 1945 तक चले दूसरे विश्व युद्ध के बाद जेनेवा में एक कन्वेंशन का आयोजन किया गया था, जिसमें जंग को लेकर कुछ नियम बनाए गए थे। दरअसल, 6 साल चले दूसरे विश्व युद्ध में करीब 5 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसके साथ ही पहली बार परमाणु बम का इस्तेमाल भी हुआ था। इतनी भीषण तबाही के बाद दुनिया के प्रमुख देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने मिलकर साल 1949 में जेनेवा में आयोजित कन्वेशन में युद्ध के नियम तय किए गए थे। इन्हें लॉ ऑफ वॉर कहा जाता है।

इन नियमों के तहत युद्ध कैसे किया जाएगा और इसमें हमला किन लोगों पर किया जाएगा, ये तय किया गया था। इसके साथ ही युद्ध में कौन से हथियार यूज किए जाएंगे और किन चीजों को टारगेट किया जाएगा ये भी निर्धारित हुआ था। इन कन्वेशन में कुल 161 नियम बनाए गए हैं, जिन्हें 196 देशों ने मान्यता दी थी। वर्तमान में यह सभी देश उन नियमों को मानने के बाध्यकारी हैं। ये नियम तब लागू होंगे जब दो या उससे ज्यादा देशों के बीच हथियारों से युद्ध लड़ा जाए।

आम नागरिकों को नहीं बनाया जा सकता निशाना

युद्ध के नियमों के मुताबिक जंग के समय आम नागरिकों पर हमला करना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। इसके अलावा पत्रकारों और मेडिकल स्टाफ पर भी हमला नहीं किया जा सकता। वहीं, नियमों के अनुसार किसी देश के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को भी निशाना नहीं बनाया जा सकता है। इसके अलावा आम जनता के लिए बने शरणार्थी स्थलों पर भी हमला नहीं किया जा सकता है।

नियमों का उल्लंघन होगा युद्ध अपराध

बिना चेतावनी दिए एक देश दूसरे देश पर हमला नहीं कर सकता है। आम नागरिकों को युद्ध प्रभावित इलाकों से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने की जिम्मेदारी भी देश की होती है। जंग के दौरान सामने वाले देश के सैन्य ठिकानों को निशाना तो बनाया जा सकता है लेकिन यदि दुश्मन देश की सेना सरेंडर कर रही है तो उसके सैनिकों के साथ मानवीय व्यवहार रखना है।

इसके साथ ही यह भी प्रावधान है कि यदि कोई देश लॉ ऑफ वॉर के नियमों को तोड़ता है तो यह युद्ध अपराध माना जाएगा। ऐसा करने पर उसके खिलाफ लॉ ऑफ चैप्टर 44 के मुताबिक इंटरनेट कोर्ट में केस चलता है।