विधानसभा चुनाव में BJP और लोकसभा में इंडिया गठबंधन को मिली थी बढ़त, अब मुस्लिम बाहुल्य इलाके में वक्फ बिल का कितना होगा असर?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसे लेकर सभी पार्टियों ने तैयारियां तेज कर दी है। यहां सत्ताधारी एनडीए और विपक्ष की महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर है। इस बीच तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर सीमांचल डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाने का वादा किया है। राज्य में सीमांचल क्षेत्र राजनीतिक कोण से काफी महत्वपूर्ण है। यहां वक्फ एक्ट का असर देखने को मिल सकता है। जिसके चलते माना जा रहा है कि यहां हिंदू वोट और मुस्लिम वोट के बीच ध्रुवीकरण भी देखने को मिल सकता है। ऐसे में क्या इस बार सीमांचल की पॉलिटिक्स का गणित बदलेगा?

मुस्लिम बाहुल्य इलाके में किसकी होगी पकड़?

बिहार में सीमांचल की राजनीतिक गणित काफी कठिन है। यह इलाका पश्चिम बंगाल से सटा है। इसके अलावा यह क्षेत्र नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा भी साझा करता है। ये इलाका बांग्लादेश बॉर्डर से भी काफी करीब है। सीमांचल में बिहार के चार जिले आते हैं, जिसमें किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया शामिल है। इन चार जिलों में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं। यह चारों जिला मुस्लिम बहुल्य इलाका माना जाता है। 

बिहार में हुए जाति जनगणना आंकड़ों के मुताबिक, सीमांचल के इन चार जिलों में से किशनगंज में 68, अररिया में 43, कटिहार में 45 और पूर्णिया में 39 फीसदी मुस्लिम आबादी है। बता दें कि, राज्य की कुल आबादी में करीब 18 फीसदी मुस्लिम हैं। यहां चुनाव में कई सीटों पर मुस्लिम वोट ही हार जीत तय करते हैं।

 

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी बनी थी बड़ी पार्टी

वैसे सीमांचल आरजेडी और कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। लेकिन साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने यहां शानदार प्रदर्शन किया था। सीमांचल की कुल 24 सीटों में से बीजेपी कुल 8 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। वहीं, यहां से कांग्रेस को 5, जनता दल (यूनाइटेड) को चार, सीपीआई (एमएल) और आरजेडी को एक-एक सीटें मिली थीं।

तब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने सीमांचल की पांच सीटों पर कब्जा जमाया था। जिसके चलते महागठबंधन का खेल खराब हो गया था। पिछले चुनाव में आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन को यहां केवल सात सीटें ही मिली थीं। महागठबंधन के खराब प्रदर्शन के पीछे एआईएमआईएम बड़ी वजह बनी थी। सीमांचल की पांच सीटें जीतने के साथ ही ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे थे। हालांकि, साल 2022 के जून महीने में ओवैसी के पांच में से 4 विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे। 

लोकसभा चुनाव में महागठबंधन ने किया था शानदार प्रदर्शन 

लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान महागठबंधन सीमांचल की चार में से दो सीटों पर कब्जा जमाया था। इसके अलावा एक सीट पर कांग्रेस से बगावत कर पूर्णिया से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सांसदी का चुनाव जीतने में सफल रहे। वहीं, एनडीए यहां से केवल एक सीट अररिया ही जीत पाई थी। वहीं, पप्पू यादव कांग्रेस के समर्थन में हमेशा नजर आते हैं। जिसके चलते सीमांचल में महागठबंधन का दबदबा है, ऐसा कहना गलत नहीं होगा। 

सीमांचल में हर विधानसभा सीट पर औसतन 36 से 37 फीसदी मुस्लिम मतदाता है। बीजेपी और एनडीए को यहां से वक्फ कानून बनने के बाद पसमांदा और गरीब मुस्लिम मतदाताओं से वोट मिलने की उम्मीद है। वहीं, महागठबंधन यहां पर मुस्लिम वोटों पर अपना एकाधिकार के तौर पर देखा रहा है। हालांकि, वक्फ बिल से सीमांचल के सियासी गणित पर क्या असर देखने को मिलता है, यह तो चुनावी नतीजों से ही पता चलेगा।