मनपा चुनाव में इस बार अकेले या गठबंधन में होगी भिड़ंत, दलों की अड़चनें बढ़ेंगी

Nagpur News : मनपा चुनाव जल्द होने की संभावना के साथ चुनाव लड़ने के इच्छुकों में हलचल शुरू हो गई। अहम सवाल बना हुआ है कि इस बार भाजपा व कांग्रेस अपने पुराने सहयोगियों को साथ रखेगी या नहीं। अकेले बल पर या गठबंधन में भिड़ंत होगी। विविध संभावनाओं के बीच क्षेत्रीय व राज्य स्तरीय दलों की अड़चनें बढ़ने के आसार हैं। भाजपा व कांग्रेस ने अभी सहयोगी तय नहीं किए हैं। दोनों दलों के प्रमुख खुले तौर पर कह रहे हैं कि गठबंधन का निर्णय स्थानीय स्तर पर लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि मार्च 2022 में मनपा पदाधिकारियों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी चुनाव नहीं हो पाए हैं। ओबीसी आरक्षण को लेकर चुनाव लंबित है। मामला न्यायालय में विचाराधीन है। सरकार की ओर से बताया गया है कि न्यायालय इस संबंध में जल्द ही अंतिम निर्णय सुनायेगी।

भाजपा की स्थिति मजबूत

पिछले चुनावों के परिणाम देखें तो भाजपा की स्थिति मजबूत है। 2017 के चुनाव में भाजपा 151 में से 108 स्थान पर जीती थी। 53 प्रतिशत से अधिक मतदान पाया था। उत्तर नागपुर में 15 स्थानों पर पराजय को अलग रखा जाये तो भाजपा के 136 में से 108 उम्मीदवार जीते थे। भाजपा का जीत का प्रदर्शन 80 प्रतिशत से अधिक था। इससे पहले भाजपा गठबंधन के प्रयाेग करती रही है। मनपा में सत्ता के लिए आरपीआई से लेकर मुस्लिम लीग से भी भाजपा ने गठबंधन किया, लेकिन पिछले चुनाव से भाजपा मित्रदलों से किनारा करती नजर आ रही है। कांग्रेस में समन्वय की दरकार : मनपा में कांग्रेस सत्ता में रही है, लेेकिन पिछले 3 चुनावों से देखे तो उसमें समन्वय की दरकार देखी जा रही है। कांग्रेस की गुटबाजी कम नहीं हो पा रही है। परिणाम यह रहा कि 2012 में कांग्रेस के 41 नगरसेवक थे। 2017 में 29 ही रहे। इसमें भी कुछ सदस्य भाजपा की बी टीम की पहचान बनाए हुए हैं। शिवसेना व राकांपा सत्ता में सहभागी रही है। भाजपा के साथ गठबंधन में शिवसेना को उपमहापौर पद मिला। कांग्रेस गठबंधन में राकांपा उपमहापौर पद पाने में सफल रही थी, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। शिवसेना व राकांपा को गठबंधन में महत्व कम मिल रहा है। इस बीच दोनों दल में विभाजन से स्थिति और भी अलग हो गई है। 2017 में शिवसेना के 2 व राकांपा से 1 नगरसेवक जीते, लेकिन अब दोनों दल के दोनों गुट में नगरसेवक के तौर पर किसी का नाम तक प्रमुखता से सामने नहीं आ रहा है।

बदलेगी स्थिति

वार्ड व प्रभाग को लेकर स्थिति बदलने की संभावना है। 2012 में 145 नगरसेवक थे। 2017 में 151 नगरसेवक चुने गए हैं। अब 156 नगरसेवक हो सकते हैं। 2017 में 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति थी। 2019 में आघाड़ी सरकार ने 2 सदस्यीय प्रभाग पद्धति का निर्णय लिया, लेकिन महायुति सरकार ने फिर से 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति का निर्णय लिया है। 2012 में 10 निर्दलीय नगरसेवक थे। 2017 में एक ही जीते। बसपा के 10 से 12 उम्मीदवार जीतते रहे हैं। बसपा इस बार भी अकेले बल पर चुनाव लड़ने की तैयार कर रही है। ऐसे में छोटे दलों के स्थानीय गठबंधन भी तैयार हो सकते हैं।