प्रशासन की निगाह में लू से मृत्यु प्राकृतिक आपदा नहीं

Bhandara News ग्रीष्मकाल की शुरुआत हो चुकी है लेकिन अभी से अधिकतम तापमान 40 डिसे पर पंहुच गया। इसका परिणाम भी मानवी जीवन पर दिखायी दे रहा है।

गर्मी से कई बार प्यास लगने, कमजोरी महसूस होने लगती है। लेकिन लू से मृत्यु होने पर शासन द्वारा किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं दी जाती है। जबकि प्रत्येक वर्ष भंडारा जिले का तापमान लगभग 45 डिसे तक पहुंच जाता है। इससे मानव के साथ-साथ पालतू जीवों की जान भी खतरे में पड़ जाती है। ऐसे में लू से मृत्यु होने पर शासन द्वारा पीड़ितों परिवारों को कोई सहायता नहीं दी जाती है। 

गाज गिरने, बाढ़ के पानी में बहने जैसी घटनाओं में शासन द्वारा मृतक व्यक्ति के परिवारों को चार लाख रुपयों की सहायता दी जाती है। जबकि गाज की चपेट में आने से बकरी की मृत्यु होने पर चार हजार, बैल की मृत्यु होने पर 40 हजार, गाय की मृत्यु होने पर 35 हजार तथा मुर्गियों की मृत्यु होने पर प्रति मुर्गी 50 रुपए शासन द्वारा सहायता दी जाती है। राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा में मृत्यु होने पर मुआवजे का प्रावधान है। प्रत्येक वर्ष गर्मी नए रिकार्ड बना रही है। तापमान बढ़कर लू लगने से मृत्यु के मामले सामने आते हैं।

पर लू लगना, गर्मी से व्यक्ति की मृत्यु होना यह राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा नहीं मानी जाती। परिणामवश प्रशासन द्वारा लू से होने वाली मृत्यु का रिकार्ड भी नहीं है। जबकि जानकारों की माने तो प्रत्येक वर्ष भंडारा व पूर्व विदर्भ के जिले में लू से कई लोगों की जान चली जाती है। इससे पशु भी प्रभावित होते है। लेकिन किसी व्यक्ति की जान जाने पर इसे प्राकृतिक आपदा नहीं माना जाता है। लू की चपेट में दिन भर बाहर धूप में काम करने वाले लोग आते हंै। जैसे धूप में मजदूरी करने, गाड़ी भरने, खाली करने वाले हमाल, बॉयलर के पास काम करने वाले कर्मचारी, बाहर बैठकर खुले आसमान के नीचे दुकान लगाने वाले दुकानदारों को लू लगने की संभावना अधिक होती है।