डिजिटल अरेस्ट करने वाले गिरोह के 12 आरोपी भेजे गए जेल, सतना-जबलपुर से गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में किए गए पेश

Satna News: साइबर फ्रॉड के सबसे बड़े खतरों में से एक डिजिटल अरेस्ट में लिप्त गिरोह के 12 सदस्यों को स्टेट साइबर सेल जबलपुर, रीवा और एसटीएफ भोपाल की 15 अलग-अलग टीमों ने हैदराबाद से लेकर जबलपुर, कटनी, मैहर व सतना में ताबड़तोड़ छापेमारी कर डेढ़ दर्जन लोगों को हिरासत में लिया था, जिनसे पूछताछ के पश्चात 12 आरोपियों की अधिकृत गिरफ्तारी की गई, जबकि अन्य लोगों को छोड़ दिया गया। पकड़े गए दर्जन भर आरोपियों को बुधवार दोपहर जिला न्यायालय जबलपुर में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिन की ज्यूडिशियल रिमांड पर जेल भेज दिया गया है। गौरतलब है कि 13 दिसंबर को साइबर और उच्च तकनीकी अपराध थाना में बीएनएस की धारा 318(4), 319(2), 336(3), 338, 61(2) एवं आईटी एक्ट की धारा 66 सी व 66 डी के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया था, जिसमें अमित निगम, संदीप चतुर्वेदी, अंजर हुसैन, साजिद खान, शशांक अग्रवाल, अर्सलान, अनुराग कुशवाहा, चंचल विश्वकर्मा, सगीर अख्तर, स्नेहिल गर्ग, अंकित कुशवाहा, अमित कुशवाहा, सुमित शिवानी, मोहम्मद मसूद, अमितेश कुंडे और रितिक श्रीवास को आरोपी बनाया गया था।

ये हुए थे गिरफ्तार, पूछताछ के बाद 2 रिहा —

कार्रवाई के दौरान संयुक्त टीम ने हैदराबाद से साजिद खान, नजीराबाद से सगीर अख्तर उर्फ साहिल, अंजर हुसैन, अरमान, आसिफ को उठाया था, जबकि उमरी से संदीप चतुर्वेदी, तुलसीनगर गौशाला से शशांक गर्ग उर्फ यीशू, अंकित कुशवाहा, सनी कुशवाहा तो पंजाबी मोहल्ला से सुमित शिवानी व ट्विंकल उर्फ स्नेहिल गर्ग को उठाया था। इतना ही नहीं 2 युवतियों को भी हिरासत में लिया था। मंगलवार की देर रात पूछताछ में साक्ष्य नहीं मिलने और एफआईआर में नाम नहीं होने से आसिफ और अरमान को छोड़ दिया गया। हिरासत में लिए गए आरोपियों के घरों से बैंक खातों से जुड़े दस्तावेज, सीसीटीवी कैमरों के डीवीआर और मोबाइल फोन जब्त किए गए थे।

टेरर फंडिंग के संदेह पर एटीएस ने शुरू की जांच, फिर स्टेट साइबर सेल को ट्रांसफर किया मामला —

सतना, मैहर, कटनी और जबलपुर समेत अन्य जिलों के आधा सैकड़ा से अधिक बैंक खातों में पिछले कुछ समय से लगातार बड़ी रकम जमा होने के बाद बाहर के देशों में ट्रांसफर होने की जानकारी सामने आने पर एटीएस भोपाल ने जांच प्रारंभ की थी, जिसमें एसटीएफ का सहयोग लिया गया। प्रारंभिक खोजबीन में यह स्पष्ट हो गया कि मामला टेरर फंडिंग का नहीं है, बल्कि डिजिटल अरेस्ट कर लोगों से रकम ऐंठने और साइबर फ्रॉड से संबंधित है, लिहाजा यह केस स्टेट साइबर सेल को सौंप दिया गया। उनके पास पूर्व से भी प्रदेश के कई जिलों में एक गिरोह संचालित होने की शिकायतें आई थीं, जो कि कम पढ़े-लिखे बुजुर्ग और मजदूर वर्ग के लोगों को टारगेट पर लेते थे, पहले अधिकारी बनकर फोन पर धमकी देते थे और फिर डिजिटल अरेस्ट कर पैसों की ठगी करते थे, मगर पर्याप्त बल उपलब्ध न होने के चलते गिरफ्तारी में एसटीएफ की मदद ली गई। साइबर सेल और एसटीएफ के अधिकारियों की मानें तो अभी तक 2 करोड़ की ठगी के साक्ष्य हासिल हुए हैं। जांच आगे बढ़ने पर आरोपियों की संख्या के साथ ठगी की रकम भी बढ़ने की संभावना है।

दुबई ट्रांसफर हो रही थी रकम —

पकड़े गए आरोपी साइबर फ्रॉड की रकम को जमा कराने और ट्रांसफर कराने के लिए बैंकिंग में कमजोर और कम पढ़े-लिखे लोगों को कमीशन का लालच देकर बैंक खाते किराये पर लेते थे, वहीं कई आरोपियों ने ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में प्राइवेट बैंकों में अपने ही नाम से कई एकाउंट खुलवा रखे थे। इनमें करोड़ों में रकम जमा होने के बाद दुबई के बैंक खातों में भेजी जा रही थी। यहीं से जांच एजेंसियों का माथा ठनका और जांच में करोड़ों के फ्रॉड का पर्दाफाश हो गया।