जानें क्यों मनाई जाती है महावीर जयंती? कैसे वर्धमान से बने भगवान महावीर

डिजिटल डेस्क, भोपाल। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) मनाई जाती है, जो कि जैन समुदाय का सबसे प्रमुख पर्व है। इस पर्व को पूरे जैन मंदिरों में बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भव्य जुलूस, शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। जैन धर्म के जानकारों के अनुसार, इस पर्व को 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष महावीर जयंती 10 अप्रैल 2025, गुरुवार को है।

भगवान महावीर के सत्य, अहिंसा, के उपदेश एक खुली किताब की भांति है। बचपन में इन्हें वर्धमान के नाम से पुकारा जाता था। भगवान महावीर को वीर, वर्धमान, अतिवीर और सन्मति के नाम से भी जाना जाता है। वे राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे, लेकिन कैसे राजशाही वर्धमान से भगवान महावीर बने और इस पर्व का क्या है महत्व? आइए जानते हैं…

कैसे पड़ा वर्धमान नाम?

माना जाता है कि, भगवान महावीर के जन्म के समय से ही इनकी माता को इनके बारे में अद्भुत सपने आने शुरु हो गए थे कि, ये सम्राट बनेंग या फिर तीर्थंकर। इनके जन्म के बाद इन्द्रदेव ने इन्हें स्वर्ग के दूध से तीर्थंकर के रुप में अनुष्ठान पूर्वक स्नान कराया था। कहा जाता है कि, इनके जन्म के समय सभी लोग खुश और समृद्ध थे, इस वजह से इनका नाम वर्धमान रखा गया। एक राजपरिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने युवावस्था में कदम रखते ही30 वर्ष की उम्र में ही संसार की मोह- माया, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़ दिया था।

महावीर को 12 साल 6 महीने के गहरे ध्यान से इन्हें ज्ञान प्राप्त करने में सफलता हासिल हुई थी। भगवान महावीर ने अपने जीवन में तप और साधना से नए प्रतिमान स्थापति किए। उन्होंने जैन धर्म की खोज के साथ ही इसके प्रमुख सिद्धांतों को स्थापित किया। इन्होंने पूरे भारत वर्ष में यात्रा करना शुरू कर दिया और लोगों को सत्य, असत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा दी।

कैसे की जाती है पूजा?

जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, इस खास दिन जैन धर्म के लोग प्रभातफेरी, अनुष्ठान, शोभायात्रा निकलाते हैं। जैन समुदाय के लोग भगवान महावीर जी की मूर्ति का सोने और चांदी के कलश से जलाभिषेक करते हैं। इस दौरान जैन संप्रदाय के गुरु भगवान महावीर के उपदेश बताते हैं और उनपर चलने की सीख देते हैं।

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