आखिरकार रितु मालू को मिली सशर्त डिफॉल्ट जमानत

Nagpur News 60 दिन की अवधि में सीआईडी की ओर से कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल नहीं करने पर मंगलवार को प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी ने आरोपी रितु मालू की अर्जी मंजूर करते हुए उसे सशर्त डिफॉल्ट जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। साथ ही कोर्ट ने इस मामले में निश्चित अवधि में आरोप पत्र दाखिल नहीं करने पर सीआईडी के प्रभारी अधिकारी को शो-कॉज नोटिस जारी किया है। न्या. ए.वी. खेडकर-गरड ने यह फैसला दिया।

यह है मामला : नशे में कार चलाकर रामझूले पर दो लोगों को कुचलने के मामले में आरोपी रितिका उर्फ रितु मालू ने नियमित जमानत के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की है। तहसील पुलिस ने इस मामले की जांच पारदर्शी नहीं होने के कारण हाई कोर्ट ने मामले की जांच सीआईडी को ट्रांसफर की थी। सीआईडी ने रितु मालू को गिरफ्तार किया। बाद में कोर्ट से मंजूरी लेकर उसे हिरासत में लिया था। रिमांड खत्म होने के बाद कोर्ट ने उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। मालू ने नियमित जमानत के लिए जिला व सत्र न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था। तब मालू ने जमानत के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है।

यह है नियम : नियमानुसार 10 वर्ष तक कारावास के दंडनीय अपराधों के लिए गिरफ्तारी के 60 दिन के भीतर जांच पूरी कर कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल करना आवश्यक है, लेकिन मालू के मामले 60 दिन के बाद भी आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया, इसलिए 61वें दिन मालू ने अपने वकील के माध्यम से मंगलवार को प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी की कोर्ट में डिफॉल्ट जमानत के लिए अर्जी दाखिल की। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद मालू को सशर्त डिफॉल्ट जमानत पर जेल से रिहा करने का आदेश दिया है।

क्या है डिफॉल्ट जमानत : सीआरपीसी की धारा 167(2) यह सुनिश्चित करती है कि, यदि जांच एजेंसी समय-सीमा के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करती है, तो आरोपी को डिफॉल्ट जमानत का अधिकार होगा। यह समय-सीमा गंभीर अपराधों के लिए 90 दिन और अन्य मामलों के लिए 60 दिन है।